तुम्हारे दर्द रह रह कर के तड़पाते अभी भी हैं
तुम्हारे दर्द रह रह कर के तड़पाते अभी भी हैं
तुम्हारे दर्द रह रह कर के तड़पाते अभी भी हैं,
तुम्हें हम प्यार दिलबर करके पछताते अभी भी हैं ।
कई आए गए मौसम जुलाई से दिसम्बर तक,
मेरी पलकों की किस्मत में तो बरसाते अभी भी हैं ।
कहे थे लफ़्ज़ जो तुमने मेरे कानों में हँस हँस कर,
हृदय के द्वार पर आकर वो टकराते अभी भी हैं ।
तेरा मिलना बिछड़ना है विधाता की रज़ा सारी,
तसल्ली दिल को दे देकर ये समझाते अभी भी हैं ।
लबों से चूमकर तुमने जो ख़त अनहद को भेजे थे,
गुलाबी मोहरों में शब्द मुस्काते अभी भी हैं ।
अजय जायसवाल ‘अनहद’
श्री हनुमत इंटर कॉलेज धम्मौर
सुलतानपुर उत्तर प्रदेश