Patni gai mayke
Patni gai mayke

पत्नी गई मायके

( Patni gai mayke )

 

पत्नी गई मायके ,बेटवा बिटिया लईके
छोड़ के पति को, ताला कूंजी दईके ।।

 

दस दिन पहले से, कर रही थी तैयारी
लड़िकन के कपड़ा चाहे, हमें चाहे सारी।।

 

रुपया चाहे हमके, खर्चा बा अबकी भारी
टूटा बा पायल कुछ और करब खरीदारी।।

 

भर गई जब मुट्ठी , लड़िकन की भई छुट्टी
फिर लेकर झोला झण्डा पति से करे कुट्टी।।

 

यहां बड़ी गरमी बा, अब हमसे ना रहाई
दीदी भी फोन करें ,बुलावत बा भौजाई।।

 

मई जून मायके में, जाकर हम रहबई
इतनी तेज गर्मी बा,यहां ना हम सहबई।।

 

पति परेशान हुआ ,मिले कैसे दाना पानी
लड़किन के छोड़के, तू चली जा महारानी।।

 

गुस्से में पत्नी बोली, करो न तुम लड़ाई
ठिका नाही लिए है भोजन हम बनाई।।

 

पति हुआ लाचार विचार कुछ ना आए
दो माह किसी तरह गरमी अब बिताए।।

 

बीत गई गर्मी आया मौसम जब सुहाना
फोन करके पति बोले, लेने कब है आना।।

 

पत्नी कहै डांट कर, अभी होए ना विदाई
कुछ दिन और रहब अकेले बा भौजाई।।

 

बच्चे जब साथ हैं, वो लेने हमको आएंगे
लड़िकन के खातिर सौ बार हमे मनाएंगे।।

 

हर साल यही हाल ,चली जाती है लुगाई
“रूप” हुआ परेशान ज्ञान कैसे हम सिखाई।।

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कवि : रुपेश कुमार यादव ” रूप ”
औराई, भदोही
( उत्तर प्रदेश।)

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