उड़ान हौसलों की

( Udaan hauslon ki )

 

जरूरी नही की स्वयं पर उठे
हर सवालों का जवाब दिया ही जाय
जरूरी है की
उठे सवालों पर गौर किया जाए..

प्रश्न तो हैं बुलबुलों की तरह
हवा के मिलते ही
बिलबिला उठते हैं
सोचिए की
आपका बैठना किस महफिल मे है…

किसकी आंखों ने
देखा है कब खुद के चहरे को
देखा है किसने कब
किसी की आंखों मे छिपे खून और पानी को…

सागर से गई हुई बूंद भी
लौट आती है जमीन पर
तुम रखो कायम वजूद अपना
हवाएं तो मौसम के साथ बदलती हैं….

बदल जाते हैं जवाब सवालों के
बिन कहे ही
हौसलों की उड़ान मे
आकाश भी उतर आता है..

 

मोहन तिवारी

 ( मुंबई )

यह भी पढ़ें :-

मुट्ठी भर आकाश | Mutthi bhar Aakash

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here