उलझे हुए हैं | Uljhe Hue Hain
उलझे हुए हैं
( Uljhe Hue Hain )
अपने जज़्बात में उलझे हुए हैं
इक मुलाकात में उलझे हुए हैं
दर्द की तान, बसी है जिनमें,
ऐसे नग़मात में उलझे हुए हैं
चाँदनी की सी चमक है जिस में
सब उसी गात में उलझे हुए हैं
इससे हासिल तो नहीं होता कुछ,
फिर भी सब जात में उलझे हुए हैं
फ़त्ह मुश्किल से मिली है लेकिन,
हम तेरी मात में उलझे हुए हैं।
हमको अपनों से मिली है जो भी
हम उसी घात में उलझे हुए हैं
ज़ख़्म सहला रहे हैं दीवाने
तेरी सौग़ात में उलझे हुए है
जो गुज़ारी थी तेरे सँग मीना
हम उसी रात में उलझे हुए हैं
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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