Bewafai Ghazal
Bewafai Ghazal

बेवफ़ाई किसी ने

( Bewafai kisi ne )

 

बिगाड़ी किसी ने बनाई किसी ने
कभी दिल्लगी कब निभाई किसी ने।

फिज़ा में उदासी घुली आज़ क्यूं है
कहीं की है फ़िर बेवफ़ाई किसी ने।

अगर तल्ख़ियां हों रखो फ़ासले तुम
मुझे बात ये थी सिखाई किसी ने।

मुझे भूल कर ख़ुश नहीं संगदिल वो
ख़बर ये ख़ुशी की सुनाई किसी ने।

मिला चांदनी में गुलाबों की शोखी
तसावीर उनकी बनाई किसी ने।

कदम बिन पिए आज क्यूं लड़खड़ाये
नज़र से नज़र को पिलाई किसी ने।

सुना आज-कल वो ख़फा है बहुत ही
कहीं आग कोई लगाई किसी ने।

नहीं मुफ़्त में मशवरे मिल रहे अब
वकीलों की कीमत बताई किसी ने।

उड़ी रुख़ की रंगत बड़ी बेक़रारी
नयन नींद लगता चुराई किसी ने।

 

सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया  ( उत्तर प्रदेश )

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