उम्मीद

उम्मीद

उम्मीद

 

शांत सी जिंदगी में फिर से शोर होगा

इस अंधेरी दुनिया में फिर कोई भोर होगा।

इसी उम्मीद में देखो कितनी बड़ी हो गयी मैं

थोड़ी मासूम तो थोड़ी नकचढ़ी हो गयी मैं।

कुछ अपनों को जाते देखा

तो परायों को आते देखा।

जिंदगी क्या है, लोगों से सुनते देखा

पर असल जिंदगी को मेरे दिल ने देखा।

जो चलती जा रही थी इस उम्मीद में,

कि कभी वो देखूंगी जो कभी न देखा।

न वो दिन आया, न वो रात आयी

उम्मीद की किरण फिर भी जगमगाई

न थकना न रुकना, तुझे तो है बस चलते रहना।

उम्मीद की ताकत ने जीना सिखा दिया

मंजिल की राह पर चलना सिखा दिया।

आज जिंदा हूँ तो इसी उम्मीद पर कि

शांत सी जिंदगी में फिर से शोर होगा

इस अंधेरी दुनिया में फिर कोई भोर होगा।

सोचती हूँ , क्यों रूठ गयी जिंदगी

आखिर कब तक करूं इसकी बन्दगी।

फिर से जल उठा उम्मीद का दिया

फिर एक नया सहारा दिया।

दूर तक जाना है मेरे साथ तुझे क्योंकि

शांत सी जिंदगी में फिर से शोर होगा।

इस अंधेरी दुनिया में फिर कोई भोर होगा।

 

☘️

लेखिका : अमृता मिश्रा

प्रा०वि०-बहेरा, वि०खं०- महोली

सीतापुर (उत्तर प्रदेश)

 

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