Vastavik Maya
Vastavik Maya

वास्तविक माया समय व श्वास

( Vastavik maya samay wa swas ) 

 

चाहें पेड़-पौधे जीव-जन्तु अथवा कोई भी इंसान,
इसी प्रकृति से हम है और हमसे ही इनकी शान।
कुछ भी तो नही मांगती प्रकृति सदैव देती रहती,
अपना‌ सर्वस्व लुटाकर भी समझती है यह शान।।

जिसने जो भी खेतों में बोया वह वैसा फल पाया,
धरा व भाग्य का स्वभाव कोई समझ नही पाया।
जीवन की वास्तविक माया तो है समय एवं श्वास,
परेशानियों में भी ख़ुश रहें सब ध्यान रखें काया।।

भाग्य सबकी काबिलियत को देखता ही है रहता,
झूठी शान वालें परिंदों को उड़ान देके गिरा देता।
अच्छा बनने के लिए पहले अच्छी सोच ज़रुरी है,
परीक्षा जीवन भर सबकी भगवन लेता ही रहता।।

घौंसला बनाकर भी पक्षी सदैव हौंसला है रखता,
बारिश व बसंत प्रभाव से इनको फ़र्क ना पड़ता।
आनंद उल्लास से तिनका-तिनका चुगकर लाता,
रिश्तो में भी अपनापन इन परिन्दो में है दिखता।।

अपनें-अपनें नज़रिए को सब बदल कर तो देखो,
स्वयं अपनी ही तलाश करें नही कोई भी बहको।
जो मान ले वो हार जाते है ठान ले वो जीत जाते,
ठोकर खाकर सम्भल जाओ फूल समान महको।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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