विभावरी

( Vibhavari ) 

 

काली विभावरी सा आखिर
तम कब तक ढोती रहोगी
चेतना विहीन मुढ बनकर
कब तलक सोती रहोगी

स्त्री मर्यादा मूल्य को समाज
के कटघरे में बतलान वाले
वो प्रज्ञान पुरुष स्वयं को सदा
ज्ञानि व विद्वान बतलाने वाले

समय के बहुमूल्य मानक संग
तुम अपनी सारी बात रखो
धीर गंभीर बन पग धीरे-धीरे
तटबंध तोड़ कदम साथ धरो

त्रुटियां हो भी जाए तो क्या
याद कर कब तक रोती रहोगी
पीड़ा का बोझ उठाकर कब
तलक खुद को खोती रहोगी

Dr. Beena Singh

डॉ बीना सिंह “रागी”

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