
विद्वान सर्वत्र पूज्यन्ते
( Vidwan sarvatra pujyate )
जीवन को आज वक्त के साथ जोडे़,
शिक्षाएँ लो आज विद्वानों से थोड़े।
शिक्षा के बिना जीवन रहता अधूरा,
कलम से विद्वान काम करते है पूरा।।
विद्वानों मे है सर्व प्रथम गुरु का नाम,
किसी को ना मिलता गुरु बिना ज्ञान।
ज्ञान बिना किसी को मिले न सम्मान,
गुरुवर ही होते सब गुणों की ये खान।।
समय की आवाज़ वक्त का आह्वान,
विद्वानों की वाणी सुनकर बने महान।
गुरु से जिसने भी प्राप्त की ये शिक्षा,
पास किया उसने हर एक वो परीक्षा।।
सुख एवं शान्ति उसके जीवन मे रही,
इसलिए विद्वानों को पूजते हर कोई।
विद्वानों का आज सारे जगत मे नाम,
पथ उन्नति का दिखाते जो धरे ध्यान।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )