विजय संकल्प

विजय संकल्प

विजय संकल्प

 

 

हार माने हार होत है

जीत माने जीत,

जीतने वाले के संग

सब लोग लगावत प्रीत।

 

मन कचोटता रह जाता

जब होता है हार,

मन ही बढ़ाता है मनोबल

जीवन सीख का सार।

 

जीत-हार का जीवन चक्र

सदैव चलता रहता है,

जीत-हार उसी की होती है

जो खेल खेलता रहता है।

 

बारम्बार हारने वाला

शिखर पर विजयध्वज लहराता है,

हार से जो घबरा जाये

इतिहास कहाँ रच पाता है।

 

कभी हार से निराश न होना

चाहे जितना हारो,

विजय का संकल्प लेकर मन में

हार को पछाड़ो।

 

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लेखक: त्रिवेणी कुशवाहा “त्रिवेणी”
खड्डा – कुशीनगर

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