आँखों आँखों में दास्तान हुई | Vinay Sagar Poetry
आँखों आँखों में दास्तान हुई
( Aankhon aankhon mein dastan hui )
आँखों आँखों में दास्तान हुई
यह ख़मोशी भी इक ज़बान हुई
इक नज़र ही तो उसको देखा था
इस कदर क्यों वो बदगुमान हुई
कैसा जादू था उसकी बातों में
एक पल में ही मेरी जान हुई
इस करिश्मे पे दिल भी हैरां है
वो जो इस दर्जा मेहरबान हुई
मिट ही जाते हैं सब गिले शिकवे
गुफ्तगू जब भी दर्मियान हुई
जब से वो शामिल-ए-हयात हुए
ज़िंदगी रोज़ इम्तिहान हुई
इक लतीफ़े से कम नहीं थी वो
बात जो आज साहिबान हुई
जब से रूठे हुए हैं वो साग़र
हर तरफ़ जैसे सूनसान हुई