विश्व धरा ज्योतिर्मय,राघवेंद्र के अभिनंदन में

 

जन ह्रदय पुनीत पावन,
सर्वत्र स्नेह प्रेम सम्मान।
कलयुग रूप त्रेता सम,
अयोध्या उपमित जहान।
मर्यादा पुरुषोत्तम दिग्दर्शन,
आराधना स्तुति वंदन में ।
विश्व धरा ज्योतिर्मय, राघवेंद्र के अभिनंदन में ।।

साढ़े पांच सौ वर्ष दीर्घ प्रतीक्षा,
राम लला प्राण प्रतिष्ठा अनूप ।
मनुज सर्व जीव जंतु विभोर,
विस्मृत निशि दिन छाया धूप ।
जीवन आनंद सार बिंब,
बस रघुराई दर्श स्पंदन में ।
विश्व धरा ज्योतिर्मय, राघवेंद्र के अभिनंदन में।।

स्वस्थ स्वच्छ सारा परिवेश,
सकारात्मक आचार विचार ।
प्रकाश जीवन दर्शन अब ,
सघन तिमिर विलोप विहार ।
हर आहट स्वर राम मय ,
शुभ मंगल अर्थ मंथन में ।
विश्व धरा ज्योतिर्मय, राघवेंद्र के अभिनंदन में ।।

शुद्ध सात्विक जन धारा,
शीर्ष धर्म परंपरा संस्कार ।
चरित्र आदर्श राह गमन,
अपनत्व अंतर्संबंध आधार ।
रीति नीति उत्तम शोभना ,
सृष्टि दृष्टि राम आभा रंजन में ।
विश्व धरा ज्योतिर्मय, राघवेंद्र के अभिनंदन में ।।

 

महेन्द्र कुमार

नवलगढ़ (राजस्थान)

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