विवशता | Kavita Vivashata
विवशता
( Vivashata )
(2 )
मेरे भोले पन का सबने , किया खूब उपयोग ।
किस-किस का मैं नाम गिनाऊँ , सब अपने है लोग ।।
मेरे भोले पन का अपने ….
नहीं स्वार्थ की भाषा सीखी , कर दी हमने भूल ।
पल-पल हर पल चुभते हैं अब , हृदय हमारे शूल ।।
विवश हुआ हूँ आज उन्हीं का , बनने को उपभोग ।
मेरे भोलेपन का सबने….
आज विवशता मत पूछो तुम , रोने दो भरपूर ।
जिन रिश्तों की मद में खोया , वही हुए है चूर ।।
उनसे ही अब भिक्षा मागूँ , ऐसे दिखते योग ।
मेरे भोलेपन का सबने ….
सोंच रहा था मन में अपने , जीवन है सेवार्थ ।
लेकिन अब तो बदल गये है , इसके भी भावार्थ ।।
धर्म-कर्म के मानें क्या है , बनते कैसे जोग ।
मेरे भोलेपन का अपने …
चीखो जितना तुम्हें चीखना , सब बैठे हैं मौन ।
कोई न पहचान है तेरी , बतला तू है कौन ।।
उसका कोई कैसे वारिश , जिसे गरीबी रोग ।
मेरे भोलेपन का सबने ….
आज समझ ले यही जगत में , है रिश्तों का मोल ।
उठा तराजू निकल यहाँ से , और इन्हें तू तोल ।।
रख माया की गठरी तू भी , सब तेरे है लोग ।
मेरे भोलेपन का सबने …..
मेरे भोलेपन का सबने , किया खूब उपयोग ।
किस-किस का मैं नाम गिनाऊँ , सब अपने ही लोग ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )
( 1 )
आपकी हर बात जब बुरी लगने लगे
हर काम बुरा लगने लगे
व्यवहार बुरा लगने लगे
आपका किसी से मिलना बुरा लगे तब
मान लीजिए कि वहां लोग आपको नहीं
आपके रिश्ते को ही निभा रहे हैं
किया होगा कुछ भी आपने
जब किया होगा तब किया होगा
किंतु उसके मूल्यांकन में आज
आपका वजूद कुछ भी नहीं
आपको बर्दाश्त करना उनकी मजबूरी है
समाज और पास पड़ोस के बीच
स्वयं को स्थापित रखना भी जरूरी है
आप अब आप नहीं रहे
किंतु आपको तुम ना कह पाना
विवशता है उनकी संभवत:
ऐसे में आपका हट जाना ही उचित है
और नहीं तो ,चुप रहिए
खामोश रहिए , खो चुके हैं
बोलने का अधिकार सारा और यह
आपके लिए मजबूरी भी है और पर्याय भी
आपकी विवशता भी
( मुंबई )