हीरो के भाई का मुंडन

( Hero ke bhai ka mundan )

मैं संगम पर अपना सिर मुंडवा रहा था। मेरे वालिद का इन्तकाल जो हो गया था। अभी आधा सिर ही मुंडा था, कि एक खुशखबरी पास के रखे ट्रान्जिस्टर नें दी । “मेरे आदर्श” “मेरे प्यारे” हीरो बिग ए की मां का देहावसान हो गया।

मैनें सिर मूंडने वाले को हाथ के इशारे से रूकने के लिये कहा। मैं अपने पिता के गम से गिरा और हीरो की मां के गम पर अटक गया। सिर मंूडने वाले ने कहा- “मैं वेटिंग चार्ज लूंगा”। मैं सहर्ष देने तैयार हो गया।

मैने हीरो जी को फोन लगाया उन्हें पूरे भारत वर्ष से फोन आ रहे थे। अतः उन्होनें मुझे       आधा सेकण्ड का ही समय दिया। मैने कहा -“सर जी बधाई।” वे गुस्सा हो गये, दहाडे़ “यू ब्लडी फूल, मेरी मां मर गई है और तुम बधाई दे रहे हो।” मैने कहा “मेरा आधा सर पिताजी के इंतकाल पर मुंडा हुआ है। बचे आधे को मैं आपकी माता श्री की याद में मुंडाना चाहता हॅू

उन्हें सम्भवतः प्रस्ताव रूचिकर लगा बोले-“कुछ देर रूको मैं बनारस के विद्धानों से पूछता हॅू।” पाॅच मिनट बाद उनका फोन आया -“विद्धानों का कहना है, कि भक्त और भगवान एक ही होते है अतः तुम मेरी मां की याद में सिर मुंडवा सकते हो, बाल हमें भिजवा देना।”

मैं पहले सोच रहा था कि मेरी मां की डेथ पर मेरे सेक्रेटरी के बाल मुंडवा दंू । फिर भी मंै एयरोप्लेन से उसे “नेसेसरी आयटम्स” के साथ भिजवा रहा हंॅू।”

मैं उस दुख के मौके पर भी अत्यन्त खुश हो गया । इतनी देर तक मुझे “मेरे आर्दश से” बात करने जो मिल रही थी। इसी को कहते है” ब्लेसिंग्स इन डिस गाइज।” मैं बोला – सही तो है, जब “डुप्लीकेट” आपकी जगह पर स्टन्ट दे सकता है, तो “डुप्लीकेट आपकी मां के मरने पर सिर क्यों नही मंुडवा सकता आप सेक्रेटरी को भिजवा दीजिये ।”

सिर मूंडने वाले ने मेरे आधे सिर पर हल्दी लगाई थी वह मेरे पिताजी वाला हिस्सा था। बचे आधे सिर पर उसने मंहगा वाला शेम्पू लगाया । उसने मेरे पिताजी वाले सिर के  चिकने हिस्से से तोे पुराना उस्तरा सााफ किया, मगर हीरो की मां वाले हिस्से को नये और मंहगेे उस्तरे से मंूडा।

मैनें उससे सिर मंूडने के पैसे पूछे तो उसने पांच हजार रूपये बतलाये। मैं भड़क गया मैनें कहा “सौदा मात्र सौ रूपये में तय हुआ था” वह बोला -”वह सौदा तुम्हारे बाप के इन्तकाल पर सिर मंुडवाने का था। आपके हीरो की माता श्री वाले हिस्से का नही । उनकी माता श्री के हिस्से के मुण्डन के चार हजार छः सौ रूपये हुये।”

मैने कहा “ठीक है। बाकी रूपये काहे के ?”

“बाकी रूपये बेटिंग चार्जेज है तो पहले ही तय हो गया था”, वह बोला

दूसरे दिन उनका सेक्रेटरी मेरा पता पूछते पूछते धर्म शाला में आ गया। नाक पर रूमाल रख कर उसने कहा “अब आप इस धर्मशाला में नहीं ठहर सकते । आप “बास” के सिर मंुडाये भाई हो गये है । आपको मेरे साथ अभी थ्रीस्टार होटल में चलना पड़ेगा अब यदि कोई भी पूछे तो आप को कहना पड़ेगा कि बिग ए. की माॅ आपकी भी माॅ थी”

मैने रास्ते में कहा-“बिग. ए. मेरे आदर्श है उनके माॅ-बाप नही”।

सेक्रेटरी ने मुझे बिग देते हुए कहा “अब कुछ नही हो सकता।” मैने पूछा “मैं बिग का क्या करूंगा ? मुझे सिर घुटा होने में शर्म नही आती।” वह बोला-” तुम लोग सिर घुटा कर टोपी पहनते हो कि नहीं ? यह फर वाली टोपी ही समझो ।

तुम्हे अभी मरे साथ मुम्बई चलना है। यह बिग ए. का मास्क पहन कर।” मैं घबरा गया । मैने कहा -“अभी मुझे मेरे पिताजी का श्राद्ध करना है।”

“भूल जाओं”, वह बोला “तुम बिग ए. के वह बिछुडे हुये भाई हो, जो बचपन में मेला में बिछुड़ गये थे। अब उनकी मां के मरने के बाद मिल गये हो। तुम्हें चान्स जल्दी मिल गया, नहीं तो बिग बाॅस की कितनी ही पूर्व माॅये और पत्नियाॅ घूम रही है, जिन्हें बिग ए. घास भी नही डालते।”

मैं अचकचा गया । मैने सोचा कि मैने किसके शोक में अपने बाल उतरवा लिये ? मैंने पूछा -“तो क्या जो मर गई वे हीरो की सगी मां नही थी ।” “वे उनकी मंुह बोली माॅं थी जिन्हें हीरो  जी सगी मां से भी ज्यादा मानते थे” सेक्रेटरी बोले ।

उधर घर से मेरे भई बहनो के बार बार फोन आ रहे थे । गरूढ पुराण वाले पण्डित जी पैसे मांग रहे थे । जो मेरे भाई बहिन देना नहीं चाह रहे थे । मैे पहुंचता तभी सारे पेमेन्ट होते।

मेरी किस्मत अच्छी थी जो लौटने में हवाई जहाज के टिकिट नहीं मिले । सेक्रेटरी ए.सी.वन के स्लीपर के टिकिट लिये । रास्ते में उन्होने मंहगी शराब निकाली और मुझे साथ देने को कहा। मैने कहा “मैं ने अभी तक चखी नहीं” है, और आप पीने को कह रहे है ! नशे वाले सफर मे मैं आपका हम सफर नहीं बन सकता।”

उन्होंने बुरा नही माना और मेरे हिस्से की भी पी गये । फिर वे सो कर खर्राटे लेने लगे। मैं आधी रात को रास्ते में चुपके से उतर गया। साथ में अपने प्रिय हीरो का मास्क भी ले आया। सुबह मैने टी.व्ही. लगाया उसमें बिग ए का साक्षातकार आ रहा था । पत्रकार ने पूछा – “आपका भाई कहा गया ?”

“वह फिर मेले में बिछड़ गया।” “मेरा आदर्श” बोला।

 

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लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव

171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

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