अफसर और सूअर
अफसर और सूअर

अफसर और सूअर

( vyang Hindi : Afsar aur suar )

अफसर को सूअर से घिन आती थी । केवल सूअर को सूअर से घिन नहीं आती । कुछ आदमियों को सूअर से घिन आती है। अफसर आदमियों से ऊपर होंता है अतः उसे आदमियों और सूअर दोनो से घिन आती है।

अफसर ने सुन रखा था कि गांव में कोयल अमराई में और आदमी और सूअर जमीन पर रहते है। वह अमराई और कोयल से मिलना चाहता था पर आदमी और सूअर से नहीं अतः वह गांव नही आता था।

उसे आदमी समझने वाले उसके अफसर ने आदेश दिया कि वह गांव का दौरा करे और वही रात्रि विश्राम करे अतः पैसे कमाने, नौकरी बचाने और प्रमोशन पाने के लालच में उसने गांव जाने का निर्णय लिया।

जिले के उस आला अफसर ने कार्यपालन यंत्री और जिला शिक्षाधिकारी की मीटिेंग बुलाई और गांव के स्कूल भवन में पश्चिमी फैशन का शौचालय बनाने का आदेश दिया।

नियत समय पर गांव की ओर कार में रवाना हुआ। वह सो गया था। वह सोता ही रहता था। उसके नथुनो को जब मल गंध ने भरना चालू किया तो वह समझ गया कि कवियों द्वारा प्रशंसित गांव आ पहुंचा है।

दोनो किनारे बने मकानो के बीच की जगह गांवो में गर्मियों में सड़क और बरसात के नाला हो जाती है । गांव के प्रवेश बिन्दु पर एक कोटवार एवं एक शिक्षक सूअर भगाने के लिये तैनात थे।

जैसे ही कार गांव में घुसी कि कहीं से दो तीन सूअर एवं नौ दस सूअर के बच्चे कार के आगे आ गये। इसके बाद उन्होने कार के आगे दौड़ना चालू किया तो अफसर ने घबराकर आंखे बंद कर ली।

कुछ देर बाद गांच के नंग घडंग बच्चे कार के पीछे शोर मचाते हुए दौड़ने लगे। अब हाल यह था कि कार के आगे सूअर के बच्चे और पीछे नंगधडंग बच्चे धूल उड़ाते, शोर मचाते गंदगी करते दौड़ने लगे ।

अफसर की घड़कन, धूल, धुंआ ओर धुमाल से बढ़ जाती थी और वही हो रहा था उसका रक्तचाप घुटने से सिर पर पहुंच गया और वेसाख्ता बोला “सूअर के  बच्चे।” ड्राइवर को यह सम्बोधन सुनने की आदत थी। वह नम्रता से बोला, “सर।”

अफसर जब ग्रामीण कार्यालय पहुंचा तब तक उसका मूड काफी खराब हो चुका था। वह चीखा “कहां है कोयल, अमराई, पुरवाई, पनघट और गौरी।” गांव का अफसर अब तक यह समझ रहा था कि शहर का अफसर निरीक्षण करने आया है।

वह सूअर और सूअर के बच्चो ंको भगाने लगा। शहर के अफसर के काॅपते अंह पर कुछ पानी के छीटें पड़ गये। उनके तने गुस्से को कुछ ढ़ीला पड़ते देख गांव का अफसर आधरा नतशिर होकर बोला “सर अंगना, अमराई, अंगडाई आती ही होगी। आर्डर इनका दिया था और आ गये सूअर के बच्चे।”

अफसर ने आदेश दिया “गांव सूअर धूल, गंदगी, गरीबी और संस्कार विहीन हो जाना चाहिये एक महीने में अगले माह जब मैं निरीक्षण के लिए आऊं गरदा, परदा और जरदा न दिखे।

कभी हमारे आफिस आओ और देखो की सफाई क्या होती है। एक भी सूअर नहीं दिखेगा।” गांव के अफसर ने सोचा कि तुम्हारा आफिस सातवें मंजिल पर है वहां सूअर कहां जमीन पर रह कर तो देखो ……….। छोटे अफसर ने सरपंच की बुला भेजा सरपंच के पूर्वज पहले जमींदार थे।

जमीदारी छिनी तो सरपंच हो गये, उसके बाद से उनके खानदान में सरपंच की जमींदारी चल रही है। सरपंच जी अफसर से खूब परिचित थे वे उन्हें अपने घर ले गये। घर क्या था महल था ।

अलग से वार। रात अफसर ने संगीतमय वातावरण में छक कर सुरापान किया जब अर्धमूर्छाा में पहुचे तो सरपंच ने कहा “हूजूर अमराई दिखी” अफसर झूम कर बोला “अहा क्या अमराई है क्या पुरवाई है क्या है शहनाई क्या अंगडाई है मजा आ गया।

कुछ देना न, लेना मगन रहना

जन न होते तो समस्याओं की कोई बात नही थी। जन थे इसीलिये कलेक्टरों को ऊपर से जन समस्या निवारण शिविर में लगाने के आदेश आये। फिर डिप्टी कलेक्टर ब्लाक के गांवो में जन समस्या निवारण शिविर लगाने लगे।

अब पटवारियों को मोहल्ले और गांव स्तर पर जन समस्या निवारण शिविर लगाने के आदेश के आने का इन्तजार है। यानि जो समस्या पैदा करे वही निवारण करे।

तुम्ही ने थोड़ा सा दर्द दिया है तुम्ही जोर से दवा देना। सारे कर्मचारियों को इन शिविरों में उपस्थित होने के कड़े आदेश दिये जाते है। इस तरह फाइल निबटाने के कार्य दिवस और कम हो गये।

इसी तरह के एक शिविर में सायं चार एक उद्घोषक घोषणा कर रहा था। “माननीय भाईयो और बहनों, अब हमारे ह्नदय सम्राट देश के गौरव माननीय जिलाध्यक्ष आने वाले है।

वे स्वयं आपकी समस्यायें सुनेंगें और उनका यहीं निराकरण करेंगे।” यह शिविर एक तीतरपानी, कुकरपानी, भाजीपानी, कुम्पानी जैसे किसी गांव में लगा हुआ था।

माननीय भाइयो और बहिनो में मात्र दस या बारह कालें कलूटे, कुपोषित बीड़ी धोंकते हुये हीनवस्त्र आदिवासी थे मगर उपस्थिति लभभग दो सौ के करीब थी। यानि शेष यथा प्रति शिविर सरकारी कर्मचारी ही थे।

युवा ह्नदय सग्राट, देश के गौरव कलेक्टर के आने तक उपसंचालक पंचायत, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, महिला बाल विकास अधिकारी, खाद्य अधिकारी, जिला शिक्षाधिकारी, तीन चार तरह के अधीक्षण यंत्री आदि अपने अपने विभाग में संचालित योजनाओं का वाचन तोतो की तरह कर चुके थे।

इन योजनाओं का टेप भी लगाया जा सकता था। माइक जनरेटर से चल रहा था यानि की गांव में बिजली तारों से सफर करके बिजली अधिकारियों के तरह शहर से अभी तक गांव में नही आई थी।

कलेक्टर के आने पर अफरा तफरी मच गई । आदिवासी समझे कि उन्हें घेर कर लाठी चार्ज किया जाने वाला है अतः वे भागने का रास्ता ढ़ंूढने लगे। उधर हर आधिकारी उनके स्वागत के लिये बिछ गया। जिसके ऊपर कलेक्टर के चरण रज नही पड़ी वह मायूस हो गया।

कलेक्टर के आगे एक व्ही.डी.ओ केमरा चह रहा था। कलेक्टर इस बात का विशेष ध्यान रख रहे थे कि वे केमरा कान्शियस न लगे। देश के गौरव ने विनम्रता पूर्वक उन लोगो के हाथ जोडे जिन्हे वे कई बार अपने चेम्बर से निकाल चुके थे। उपस्थित कायर लोग गदगद हो गये।

जिले के जिलाधीश महाराज फिर सिंहासन पर विराजमान हुये। उन्होने खडे हुये दरबारियों को देखा वे मानों पहले से मुस्कुरा रहे थे। कलेक्टर ने संतुष्ट होकर उन्हे बैठने का संकेत दिया।

जिला दण्डाधिकारी ने फिर सारे अधिकारियों को देश भक्ति एवं कर्तव्य निष्ठा पर संक्षिप्त भाषण दिया जिससे सारे अधिकारियों के अपराध बोध से सिर झुक गये।

पर क्षीण संख्या आदिवासियों को कुछ समझ में नही आया । जिस तरह एक पिल्ला हाथी को देखता है वे उसी तरह हाथ जोड कर जिलाध्यक्ष को देखने लगे। डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने फिर एडीशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट से कहा कि जनसमस्यायें बतलाई जावे।

उपजिलाध्यक्ष ने खडे़ होकर कहा “माननीय जिलाध्यक्ष महोदय साथी अधिकारियों और प्यारे आदिवासी भाइयों और बहिनों हमने हमने हर झोपड़ी से समस्यायें निकालने का प्रयत्न किया है । पहिले तो समस्यायें हमे देख कर घर में घुस गई ।

कुछ जंगलो में भाग गई, कुछ को ही हम जबरदस्ती घसीट कर यहां ला पाये है। वे ही डरी हुई आपके सामने बैठी हैं । अब हम प्रति विभाग उन्हे प्रस्तुत करते है पहले स्वास्थ विभाग स्टेज के नीचे खड़ा हो जाये।

अन्दर से डरता हुआ सी.एम.एच.ओं. खड़ा हो गया। उप जिलाध्यक्ष ने बतलाया यहाॅ पिछले तीन वर्ष से टीकाकारण नही हुआ है ।

कुओं में ब्लीचिंग नही डाला जाता, उल्टी दस्त से नौ मौते हो चुकी है। कोई भी जननी सुरक्षा का प्रकरण नहीं बना है। जननी एक्सप्रेस का नामोनिशान नहीं है।

कलेक्टर का थर्मामीटर और बेरोमीटर चढ़ गया। वे डांटते हुए बोले “डाक्टर साहब इन गरीब आदिवासियों को क्या स्वस्थ रहने का हक नहीं है ।

सी.एम.एच.ओ. ने हकलाते हुए जवाब दिया “सर, मैं कल ही सी.एम.एच.ओ. बना हॅू । हमारे विभाग में हर छः माह में सी.एम.एच.ओ. बदल दिये जाते है फिलहाल मैं एम.पी.डब्ल्यू का ट्रान्सफर कर देता हॅू। पिछले साल उल्टी दस्त से दस मौते हुई थी इस साल नौ ही हुई है अतः स्थिति “नियंत्रण में है।”

“वेरी गुड” कलेक्टर ने रिमार्क दिया” और जननी सुरक्षा योजना ? सर यहां से निकटतम प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र सौ कि.मी. दूरी पर है।

संस्था गत प्रसव, सुरक्षित प्रसव हेतु लागू किये गये है। यदि प्रसवरत महिला को किसी भी एक्सप्रेस से निकटस्थ प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र ले जाया जायेगा तो रास्ते में ही प्रसव हो जायेगा ?

“ अब दूसरा विभाग” कलेक्टर ने कहा मुख्य चिकित्सा अधिकारी शेर से बचे खरगोश की तरह भागा । डिप्टी कलेक्टर ने कहा “जिला शिक्षाधिकारी के विरूद्ध शिकायत है कि स्कूल केवल परीक्षा के समय ही खुलता है। काल्पनिक लड़के रजिस्टर में ही भर्ती होते है ।

उसी में पास होते है और उसी में उन्हे शाला छोड़ने का प्रमाण पत्र मिल जाता है। मध्यान्ह भोजन खर्च तो होता है पर खाता कोई नहीं। शिक्षक तहसील में परचूनी की दुकान चला रहे है। आदिवासियों को मालूम नहीं है कि कौन से हाथ का अंगूठा लगाया जाता है।”

“यह तो शर्म की बात है” जिलाध्यक्ष ने कहा और शिक्षको को निलंबित कर दिया। इससेे निलम्बित शिक्षकों ने प्रसन्न होकर भगवान को प्रसाद चढ़ाया ।

उनके ऊपर से रह रहंे बन्धन भी टूट गये। “पंचायत एवं समाज सेवा पर इल्जाम यह है कि यहां किसी भी फटेहाल के गरीबी रेखा के कार्ड नही नहीं बने।

मतलब यह है कि सारे आदिवासी अमीर है मगर झोपड़ीयों में रहते है फटे कपडे़ पहनते है कोदो और महुआ खाते हैै। दारू घर पर बना कर पीते है और बीड़ी पीते है।

” डिप्टी कलेक्टर बोलता गया “किसी की वृ़द्धावस्था पेंशन नहीं बनी एवं विकलांग प्रमाण पत्र नही बने। उप संचालक पंचायत बोला “सर मगर हमने अपने लक्ष्य पूरे कर लिये है और आंकडे भिजवा दिये है।”

“ठीक है आंकडे भिजवाते रहिये और यहां एक विशेष शिविर लगा कर बचे काम पूरे कर ले” कलेक्टर ने आदेश दिये हालांकि कलेक्टर को भी मालूम था कि यदि इस गांव में हर दिन भी जन समस्या निवारण शिविर लगाते रहें तब भी ये चतुर अधिकारी काम नहीं करने वाले।

“खाद्य विभाग ने यहां किसी के राशन कार्ड नहीं बनाये है। डिप्टी कलेक्टर ने पन्ना पलटा” यहां की राशन की दुकान यहां नहीं लगती ।

राशन लेने के लिए आदिवासियो को तीस किलोमीटर जाना पड़ता है वहां भी आदिवासियों के अलावा हरेक को राशन मिलता है। आदिवासियो के नाम पर राशन पूरा आ रहा है । मगर उन्हें नहीं मिल रहा है । वे कोदो खोद कर ही खा रहे है।”

“ठीक है जल्दी जल्दी अगला विभाग पूरा करो मुझे एक पार्टी में जाना है” कलेक्टर बोले बाकी सब इसी तरह की छोटी मोटी शिकायते है सर “जैसे आंगनवाडी कार्यकर्ता तीस मील दूर रहती है।” डिप्टी कलेक्टर ने 32 एक्स स्पीड पकड़ी “पटवारी नामान्तरण नहीं करता” रोजगार गारन्टी योजना लागू नहीं की गई सहकारी बैंक दो हजार रूपये देकर बीस हजार पर अंगूठा लगवा रहे है और बाद में कुर्की कर देते है।

जिससे एकाध आदिवासी आत्महत्या भी कर लेता हैै तीन साल से गांव में बिजली नहीं आई जिससे पम्प नहीं चल रहे है।”

“ठीक है ठीक है कलेक्टर ने बीच में माइक लेकर कहा मुझे इस बात की खुशी है कि सारे विभाग यथा संभव काम कर रहे है जिससे गरीबी कम हुई ही है और “पर केपीटा इन्कम” बड़ी है। देश प्रगति कर रहा है। देश के इकानामिक फिगर बतलाते हैं।

कि मुद्रा स्फीती कम  हो रही है। यह सब हम लोगो के सामूहिक प्रयास का नतीजा है । अन्त में, इस सफल जन समस्या निवारण शिविर के लिये आप सब बधाई के पात्र है।”

 

✍?

 

लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव

171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

यह भी पढ़ें : –

मुकदमा कंप्यूटर पर | Vyang

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here