रोज़ ढूंढ़ा है वफ़ा का घर यहाँ | Wafa par shayari
रोज़ ढूंढ़ा है वफ़ा का घर यहाँ
( Roz dhoonda hai wafa ka ghar yahan )
रोज़ ढूंढ़ा है वफ़ा का घर यहाँ
इसलिए खाता रहा ठोकर यहाँ
फोड़ देता सर दग़ा उस छल कप का
की नहीं था हाथ में पत्थर यहाँ
वो नजर आया नहीं चेहरा कहीं
मैं रहा फिरता गली दिनभर यहाँ
इसलिए मंजिल मिली मुझको नहीं
रास्ता ही कब मिला बेहतर यहाँ
कौन मिलता है मुहब्बत से मगर
दुश्मनी का ख़ूब है मंजर यहाँ
दोस्ती का क़त्ल ऐसा कल हुआ
दुश्मनी के ही चले है ख़ंजर यहाँ
फूल खुशियों का दिया आज़म नहीं
दे गया ग़म के अपना नश्तर यहाँ