यार तू हँसना हसाना छोड़ दे
यार तू हँसना हसाना छोड़ दे
यार तू हँसना हसाना छोड़ दे
लोगो की बातों में आना छोड़ दे
इस तरह तू मुस्कराना छोड़ दे
गम को अपने तू छुपाना छोड़ दे
अब न राधा और मीरा है कोई
श्याम तू बंशी बजाना छोड़ दे
प्यार भी ये इक बला है मान कर
गीत उल्फ़त के सुनाना छोड़ दे
ये न मानेंगे तुम्हारी बात को
वक्त इन पर तू गवाना छोड़ दे
धर्म के बस काम करता चल यहाँ
क्या यहां अच्छा बताना छोड़ दे
माँ पिता ही रूप हैं भगवान का
बात जग को यह बताना छोड दे
इस जहां में तेरी खातिर कुछ नही
आज ही अपना ठिकाना छोड़ दे
जाति पहले थी नहीं कोई प्रखर
ये विभाजन तू कराना छोड़ दे
महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )