ये जहाँ यूं भी तो नहीं मेरा | Ye jahan | Ghazal
ये जहाँ यूं भी तो नहीं मेरा
( Ye jahan yun bhi to nahi mera )
ये जहाँ यूं भी तो नहीं मेरा
तुम्हारे बगैर गुज़ारा यूं भी तो नहीं मेरा
मौत के बाहों में सोने वाले से ज़िक्र-ए-ज़िन्दगी ना करे
लगता है, है अपना मगर ज़िन्दगी यूं भी तो नहीं मेरा
वेह्शत में हूँ और साथ में कई गम सह रहा हूँ
दीवाने-पन का नतीजा सह रहा हूँ जो यूं भी तो नहीं मेरा
मुक़म्मल था दिल, ये ज़ख्म और बटवारा कैसे
येसे में ये दिल यूं भी तो नहीं मेरा
गिर्द-ओ-नवाह में कोई तो होगा जो सिर्फ मेरा होगा
फिर याद आया, किसके लिए ढूंढू, में खुद यूं भी तो नहीं मेरा
रफ्ता रफ्ता कर ‘अनंत’ को टूटने दे रहा हूँ
जुड़ कर भी करेगा क्या, ये ज़माना यूं भी तो नहीं तेरा
शायर: स्वामी ध्यान अनंता