ये कैसी आज़ादी
ये कैसी आज़ादी

 ये कैसी आज़ादी 

( Ye kaisi azadi )

 

जब किसी घर में

चुल्हा न जले

और परिवार

भूखा ही सो जाए…..

 

जब किसी गांव में

गरीब लोगों को

भीख मांग कर

पेट भरना पड़े……..

 

जब किसी शहर में

फुटपाथों पर

बेसहारों को भूखो

रहना पड़े

और सिर ढकने

के लिए

जगह भी मयस्सर

न हो पाए तो………

 

क्या जरूरत है ऐसे देश में

आज़ादी का जश्न मनाने की…?

 

जहां एक ओर तो

आज़ादी के जश्न में

डूबे हुए बड़े-बड़े

साहूकार, राजनेता

मौज उड़ाते हैं और

दूसरी ओर देश की

गरीब जनता

दो रोटी को

तरसती है……..!

 

ऐसी आज़ादी किस काम की

जो गरीब, बेसहारा लोगों को

भूख ,गरीबी से आज़ादी

न दिलवा सके……..!!

 

 

?

कवि : सन्दीप चौबारा

( फतेहाबाद)

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