Kavita aaj bhi hoon

आज भी हूँ | Kavita aaj bhi hoon

आज भी हूँ

( Aaj bhi hoon )

 

मैं मर चुका हूं ये कौन कह रहा है,
मैं कल भी कालजयी था आज भी हूं l
मेरा जीवन हर कल में स्थिर रहा है ,
मैं कल भी था असुराधिपति आज भी हूँll

 

रावण है जब तक इस जग में , राम तेरा अस्तित्व है l
सतत विजय अभियान तेरा तो , हार मेरा व्यक्तित्व है l
पाखण्ड झूठ छल दंभ द्वेष की , बहती है जग में धारा l
युगों युगों तक मेरी ही नीति ,स्वीकारेगा ये जन सारा l
बीता हो या वर्तमान मेरा यशगान गा रहा है ,
मैं कल भी नहीं था आश्रित न आज ही हूँ ll मेरा ०

 

तू कहता है विज्ञान जिसे ,वह मेरा ही अनुपम ज्ञान है l
होने वाले हर अविष्कार में ,नित मेरा ही सोच विधान है l
हमने आपस मे लड़कर के, दिव्यास्त्र मिटा डाले थे तब l
मानव ने करके फिर अविष्कार ,पुनः बना डाले है अब l
कैसे रोकेगा तू विनाश वापस समय आ रहा है,
भय का तांडव मैं कल भी था आज भी हूँ ll मेरा ०

 

तपन सूर्य की मेरे वश में ,चंद्रदेव की शीतलता l
वेग वायु का मेरे वश में , धन वैभव की चंचलता l
सत्ता उसके वश में होती ,रखता मुझसा अभिमान l
न्याय धर्म सब मेरे बस में ,मेरी शक्ति वैभव पहचान l
तेरा ये मानव दानव बन मेरे पथ पर जा रहा है,
मैं कल भी था सत्ता का आदर्श आज भी हूँ ll मेरा ०

 

जो कभी सुलभ था देवो को ,आज सुलभ धरती में है l
एक स्वर्ग की बात छोड़ ,अनगिनत स्वर्ग धरती पर है l
हाथी घोड़े रथ दूर हुए ,धरनी नभ में अनगिनत यान l
बिरथ नहीं सब रथी हो गए ,अब रहा नहीं देवो का मान l
राम तेरे पुनर्जन्म का अवसर जल्द आ रहा है,
कर प्रयास मैं कल भी जीवित था आज भी हूँ ll मेरा ०

 

जिसका निवास हो स्वर्ण महल, वैभव की क्या ताल l
जिसकी नाभि में अमृत , उसका क्या कर सके काल l
ब्रम्हा शिव का वरदानी ,त्रेलोक्य विजेता है रावन l
रावण कल तक था तमाचार , मन विचार है जन जन l
लद गए सदाचार के दिन अब अनाचार भा रहा है ,
कुल विनाशकर्ता मैं कल भी था आज भी हूँ ll मेरा ०

 

देख आज मानव वैद्यो को , चिकित्सा का व्यापार l
मृत देहो को वायुयंत्र करके प्रदान ,अर्जित धन ही सार l
दानव था पर वैद्य महान , लक्ष्मण को देकर जीवन दान l
सुषेण बना जीवन का दाता ,रामादल में पाया सम्मान l
अंगो का व्यापार देख हे राम लज्जित हो रहा हूँ ,
दानव दुर्लभहारी मैं कल भी था आज भी हूँ ll मेरा ०

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रचनाकार -ओंकार सिंह चौहान
( सतना मध्य प्रदेश )

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