जिन्दगी चार दिन की | Zindagi Char Din Ki
जिन्दगी चार दिन की
( Zindagi Char Din Ki )
लहरों के संग चलो ठिठोली करते हैं,
बस एक बार तुम हम हम तुम बनते हैं।
आओ ज्वार संग भाटा के साथ जाने के लिए ,
जिन्दगी चार दिन की खुश रहो कुछ पाने के लिए ।
हाँ ठीक समझे वक्त को साथ लेकर आना,
दुनियाभर की दुनियादारी छोड़कर आना ।
करेंगे गपशप कोई नई गीत गुनगुनाएंगे,
प्रेम साधकर इश्क के संगम में खूब नहाएंगे ।
कल का कितना भी इंतजार कर लो,
कल की बांहों में चाहे खुद को भर लो ।
कल कहाँ कभी आया है जो इंतजार करे,
खोकर आज को कल का क्यूँ इंतजार करे ।
आज में आओ जीकर आज को पाया जाय,
जो चिंतन को पूजता वही सुकून छाया पाय।।
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई
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