जिंदगी की किताब
( Zindagi ki kitaab )
एक दिन
पढ़ने लगा
जिंदगी की किताब,
पलटने लगा
पल पल के पन्नों को
और समझने लगा
बीती दास्तां।
खोता गया
अतीत के
शाब्दिक भाव में,
मन में
उभरने लगा
अक्षरता एक चित्र।
लोग इकट्ठा थे
बोल रहे थें
बलपूर्वक
जोर शोर से,
हां हां….
थामो…..
गिरने मत देना…..
और देखते देखते ही
लम्बी चौड़ी
भारी भरकम
छप्पर ,
दीवार पर
चढ़ चुकी थी।
मस्तिष्क
कला और भाव
पक्ष से प्रसांगिक
व्याख्यान दिया
बल में शक्ति है?
या
समूह में शक्ति है?
निष्कर्ष में पाया
प्रेम में शक्ति है
प्रेम ही बल है।
रचनाकार –रामबृक्ष बहादुरपुरी
( अम्बेडकरनगर )