जिंदगी को मगर कब ख़ुशी मिल रही | Zindagi Shayari
जिंदगी को मगर कब ख़ुशी मिल रही
( Zindagi ko magar kab khushi mil rahi )
जिंदगी को मगर कब ख़ुशी मिल रही
रोज़ ही ग़म भरी चांदनी मिल रही
मिल रही है दग़ा की रवानी मुझे
बावफ़ा कब भरी दोस्ती मिल रही
हम सफ़र तो बना ही नहीं कोई भी
जीने के ही लिए शाइरी मिल रही
दोस्त कोई मिला ही नहीं है यहां
जिंदगी को यहां दुश्मनी मिल रही
इसलिए दिल भरा है तन्हाई से ही
प्यार की जिंदगी को कमी मिल रही
जिंदगी को मिली है दग़ा रोज़ ही
की न वो बावफ़ा आशिकी मिल रही
मैं खोया हूँ पुरानी गलियों में कभी
मजिलों की न राहें नयी मिल रही
होठों पे कब मिली है हसीं अपनों से
रोज़ आँखों में “आज़म”नमी मिल रही
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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