घर जाने की उसके ही जरूरत नहीं
घर जाने की उसके ही जरूरत नहीं
घर जाने की उसके ही जरूरत नहीं
जब रही उसको तुझसे मुहब्बत नहीं
प्यार से कैसे महकेगी सांसे मेरी
फूलों में ख़ुशबू की वो नज़ारत नहीं
इसलिए छोड़ दिया साथ उसका मैंनें
दोस्त उसकी लगी अच्छी आदत नहीं
कर गया है मुझे ग़ैर वो उम्रभर
कब रही उससे मुझको शिक़ायत नहीं
जख़्म ऐसा लगा है अपनों से मुझे
जिंदगी में रही मेरी राहत नहीं
भूल गया है आज़म को शायद वही
आया उसका कभी फ़िर मुझे ख़त नहीं
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )