हर ज़ुल्म पर अब प्रहार होगा

( Har zulm par ab prahaar hoga ) 

 

हर जुल्म पे तेरे अब प्रहार होगा

हाॅं एक वार पे तेरे सौ बार होगा

है चुनौती तुझे हद में रहने की

तेरे वार से वार मेरा दमदार होगा

हर जुल्म पे तेरे अब प्रहार होगा …

तेरी करतब,कलाकारी अब काम न आएगी

तेरी झूठ और मक्कारी सब सामने आएगी

पहरेदारी में भागे है बकायेदार जाने कितने

हिसाब आने-पाई का तुझसे अब आर-पार होगा

हर जुल्म पे तेरे अब प्रहार होगा …

दिखाए जो सतरंगी ख़्वाब गरीब की निगाहों को

दरिया को ज़मी बता करके दिखाया चांद-तारों को

तरसते मन को तरसाया झूठ ऑंखों को दिखलाया

अब महल तेरा भी ताश के पत्तों-सा तार-तार होगा

हर जुल्म पे तेरे अब प्रहार होगा …

वही जादू वही तमाशा रोज़ अच्छा नहीं लगता

और चासनी-सा डूबा भाषण सच्चा नहीं लगता

याद कर ले वो खेल पुराने हैं, न वो बात पुरानी है,

जवाब हर गेंद का छक्का अब न रन चार होगा

हर जुल्म पे तेरे अब प्रहार होगा

 

नरेन्द्र सोनकर
बरेली,उत्तर प्रदेश।

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