जुल्म का अब हिसाब करना है | Zulm shayari
जुल्म का अब हिसाब करना है
( Zulm ka ab hisab karna hai )
आज वो बेनकाब करना है
जुल्म का अब हिसाब करना है
ख़ूब कर ली उसी ने अब चुगली
कुछ तलब कुछ ज़वाब करना है
रोज़ कड़वी बातें बोले है वो
रिश्ता उसको ख़राब करना है
फ़ासिले जो करके चले चेहरा
वो अपना इंतिखाब करना है
जो हक़ीक़त कभी न हो सकता
दूर आंखों से ख़्वाब करना है
दिल दुखाकर उसे मगर आज़म
रोज़ आंखों में आब करना है