वक़्त | Kavita waqt
वक़्त
( Waqt )
जब से छाया गुनाहों की पड़ने लगी ।
रूह मेरी ही मुझसे झगड़ने लगी ।।
तेज आंधी से जंगल जब हिलने लगे ।
सूखे पेड़ों की दम तब उखड़ने लगी ।।
मन के बीरान जंगल डराने लगे ।
गर्म बालू सी तबीयत बिगड़ने लगी ।।
वक़्त के लम्हें ओलों से गिरने लगे ।
जिंदगी की हरेक सांस झड़ने लगी ।।
मरते दम तक भी जब बच्चे आये नहीं ।
लाश तक बाप की तब अकड़ने लगी ।।
लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव
171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)