Kavita waqt

वक़्त | Kavita waqt

वक़्त

( Waqt )

 

जब से छाया गुनाहों की पड़ने लगी ।
रूह मेरी ही मुझसे झगड़ने लगी ।।

 

तेज आंधी से जंगल जब हिलने लगे ।
सूखे पेड़ों की दम तब उखड़ने लगी ।।

 

मन के बीरान जंगल डराने लगे ।
गर्म बालू सी तबीयत बिगड़ने लगी ।।

 

वक़्त के लम्हें ओलों से गिरने लगे ।
जिंदगी की हरेक सांस झड़ने लगी ।।

 

मरते दम तक भी जब बच्चे आये नहीं ।
लाश तक बाप की तब अकड़ने लगी ।।

 

 

✍?

 

लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव

171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

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