Geet ab tak bhi aas adhoori hai
Geet ab tak bhi aas adhoori hai

अब तक भी आस अधूरी है

( Ab tak bhi aas adhoori hai )

 

खूब कमाया धन दौलत मंशा क्या हो गई पूरी है
मातपिता नैन तरसे अब तक भी आस अधूरी है

दूर देश को चले गए धन के पीछे दौड़ लगाने को
भूल गए लाड़ दुलार किस्मत को आजमाने को

 

बीवी बच्चे ही परिवार बुजुर्गों से बना ली दूरी है
मन में झांको थोड़ा अब तक भी आस अधूरी है

 

वो तीर्थ धाम करना चाहे तुम प्रमोशन में लगे रहे
जिसने तुमको जन्म दिया कितनी रातों जगे रहे

 

जिनकी आशीषों से होती सारी इच्छाएं पूरी है
संभालो उनको जरा अब तक भी आस अधूरी है

 

कितने देव मनाए होंगे ममता भी बलिहारी होगी
उन्नति पथ पर साथ दिया हर मुश्किल हारी होगी

 

संवार दिया जीवन अपनी कोशिश कर दी पूरी है
जा सहारा दो उनको अब तक भी आस अधूरी है

   ?

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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