कालरात्रि | Chhand kalratri
कालरात्रि
( Kalratri )
मनहरण घनाक्षरी
काली महाकाली दुर्गा,
भद्रकाली हे भैरवी।
चामुंडा चंडी रुद्राणी,
कृपा मात कीजिए।
प्रेत पिशाच भूतों का,
करती विनाश माता।
सिद्धिदात्री जगदंबे,
ज्ञान शक्ति दीजिए।
अग्नि ज्वाला से निकले,
भयानक रूप सोहे।
खड्ग खप्पर हाथ ले,
शत्रु नाश कीजिए।
रूद्र रूप कालरात्रि,
पापियों का नाश करें।
खुशियों से झोली भर,
शरण में लीजिए।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )