कलयुगी दोहे | Rastogi ke dohe
कलयुगी दोहे
( Kalyugi dohe )
झूठ बराबर तप नही,सांच बराबर पाप।
जाके हृदय झूठ है,ताके हृदय है आप।।
रिश्वत लेना धर्म है,सच बोलना है पाप।
दोनो को अपनाइए,मिट जाएंगे संताप।।
माखन ऐसा लगाईये, बॉस खुश हो जाए।
बिना काम के ही,प्रमोशन जल्दी हो जाए।।
गंगा नहाए से पाप धुले,मै सागर में नहाऊं।
सागर में सब मिलत है,क्यो न पुण्य कमाऊं।।
पैसे से पैसे खिचत है,पैसे से बढ़ती आय।
पैसे से जो पैसे न खींचे,वह पीछे पछताय।।
तन को से साबुन लगाय के,सेंट दिया लगाय।
तन में फिर बदबू आत है,क्यो न सेंट लगाय।।
रचनाकार : आर के रस्तोगी
गुरुग्राम ( हरियाणा )