लड़की | Ladki par kavita
लड़की
( Ladki )
जन्म के समय लड़के और लड़की में फ़र्क नही होता,
पर जन्म लेते ही ये समाज बाँट देता है उन्हें ,
बांट दिए जाते हैं उनके खिलौने,
बाँट दी जाती हैं उनकी फरमाइशें,
बाँट दिए जाते है उनके सपने ,
और यहीं से जन्म लेती है लड़की
और जन्म लेती है समाज की पाबंदियां
ये समाज बना देता है एक लड़की को लड़की,
और थोप देता है अपने बेहूदे नियम,
छीन लेता है एक लड़की के सारे अरमानों को ,
और नाम दे देता है सुरक्षा,
काट देता है सपनों के पंखों को ,
नाम दे देता है भलाई
क्या फायदा ऐसी सुरक्षा और भालाई का
जहां पर घुटन है,बेबसी है,डर है, ,
और अपने अस्तित्व को ना बचा पाने की कसक
✒️
लेखिका: नजमा हाशमी
(JRF रिसर्च स्कॉलर जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली )
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