Kavita swarg narak ka dwar
Kavita swarg narak ka dwar

स्वर्ग नर्क का द्वार यही है

( Swarg narak ka dwar yahi hai )

 

आज सभी की ज़िंदगी थोड़ी अस्त व्यस्त है,
लेकिन हाॅं यह फिरभी बड़ी जबरदस्त सी है।
इसको जबरदस्ती से कोई नही जीना यारों,
स्वयं को जबरदस्त बनाकर इसको जीना है।।

 

सोच समझकर ये अपनें क़दम आगे रखना,
अपनें कर्म का फ़ल ख़ुद को पड़ेगा भोगना।
अच्छे बुरे काम का परिणाम ‌भी यही पर है,
इसलिए ज़िंदगी सभी सही तरीक़े से जीना।।

 

दुःख और सुख तो जीवन का है ‌एक मेला,
क्यों कि स्वर्ग- नर्क द्वार अब यही पर है ना।
हर इंसान का आना और जाना भी अकेला,
चाहे राजा-रंक सब को ये संसार है छोड़ना।।

 

इस इन्सानी जीवन में कर लो सभी सद्कर्म,
धुल जाऍंगे जन्म- जन्म के पापो के ये कर्म।
जिसने किया ईश्वर का ध्यान वो बना महान,
मत करना कभी कोई छल कपट अभिमान।।

 

जैसे को तैसा प्रतिफल अवश्य मिलना ही है‌,
यह स्वर्ग एवं नर्क का द्वार आज यही पर है।
अनेंको लोग तिर गऍं जीवन के भवसागर में,
और कई लोग डूब गऍं करके खोटे कामो में।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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