Kavita Samay ke Sang

समय के संग कैसे दौड़ू | Kavita Samay ke Sang

समय के संग कैसे दौड़ू

( Samay ke sang kaise daudoon ) 

 

वक्त निकला जा रहा तीव्र गति के साथ
समय संग कैसे दौड़ू बोलो हे मेरे नाथ

 

शनै शनै यूं बीत रहे पल प्रतिपल दिन रात
कालचक्र भी घूम रहा है बदल रहे हालात

 

नियति खेल निराले भांडा अभाग्य कैसे फोडूं
कैसे वक्त के साथ चलूं समय संग कैसे दौड़ूं

 

दिवस मास वर्ष सारे क्षण क्षण बीता जा रहा
पल-पल बदले दुनिया आईना वक्त दिखा रहा

 

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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