अनहार | Anhar par Bhojpuri Kavita
“अनहार, दिया आऊर आस “
( Anhar, diya aur aas )
दीया जला देहनी हऽ ओहिजा
काहे से उहवा रहे अनहार
जहवां से कइगो राही गुजरे
जाने कब केहू उहवा जाए हार
एगो, दुगो, तिन गो, नाही चार,
उहवा से राही गुज़रेला हर बार
मगर केहु न जाने किस्मत के
कब कहवां के खा जाई मार
शायद जलत दिया के चमक
रख सके उ जगह अंजोर
ना दिखे मंजिल ओसे मगर
आस मिल जाए होए के भोर
अऊर आगे बढ़े जब ऊहवा से
हो जाए ऊ शायद पोर- पोर
दीया जला देहनी ह उहवा
ताकी न होये केहू कमजोर