राजनीति के महारथी: नरेन्द्र मोदी
जन्मदिवस विशेष
वर्तमान समय में जिस एक राजनेता का नाम भारत के प्रत्येक नागरिकों के दिल में बसता है ,जो 140 करोड़ देशवासियों के संरक्षक हैं, जो सम्पूर्ण विश्व समुदाय की आशा के किरण हैं, वैश्विक चुनौतियां का सामना करने के लिए जिस एक व्यक्ति पर संपूर्ण विश्व की निगाहें टिकी हुई हैं, जिसको दैवीय शक्तियों ने विश्व परिवर्तन के लिए स्वयं चुना है, विलुप्त होती भारतीय संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए जिनका हर स्वांस समर्पित है, ऐसे दिव्य ज्योति पुंज हैं -नरेंद्र दामोदरदास मोदी।
कहते हैं कि अकेला चना भर नहीं फोड़ सकता लेकिन उन्होंने इस युक्ति को गलत सिद्ध कर रख दिया है।उनका व्यक्तित्व इतना दिव्य है कि अकेले व्यक्ति से संपूर्ण विश्व की दिशा धारा बदल कर रख दिया है।
उनके व्यक्तित्व का ही प्रभाव है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार का पर्याय बन चुका है मोदी सरकार ।
जिस देश को सपेरों का देश कहा जाता था उन्होंने इस कथानक को भी उन्होंने गलत सिद्ध करके रख दिया है। आज भारत विश्व पटल पर अंतरिक्ष क्षेत्र में भी अपनी प्रमुख भूमिका निभा रहा है।
उनका विजन है 2047 तक भारत विकासशील से विकसित देशों में गिना जाए।
उन्होंने भारतीय जनमानस में राष्ट्र प्रेम की एक नई अलग जगह दी है।राष्ट्र सर्वोपरि है। जातिवाद, संप्रदायवाद , क्षेत्रवादी संकीर्णताओं से मुक्त होते हुए व्यक्ति राष्ट्रीय विचारधारा, राष्ट्रीय परिवर्तन का चिंतन करने लगा है। वह सोचता है कि यदि राष्ट्र रहेगा तो हम रहेंगे ,राष्ट्र की गरिमा हमारी गरिमा है।
ऐसे दिव्य व्यक्तित्व का जन्म 17 सितंबर 1950 को गुजरात के एक छोटे से कस्बे वडनगर में हुआ था। उस समय वडनगर एक शांत, अर्ध -ग्रामीण, पिछड़ा इलाका था । मोदी जी से जब उनके बचपन के बारे में पूछने पर बताया कि कस्बे में कभी 10000 बौद्ध भिक्षु रहा करते थे ।
उनके पिता का नाम दामोदरदास एवं मां का नाम हीरा बेन था। उनके पिता दामोदरदास की बड़नगर के प्लेटफार्म पर एक चाय की दुकान थी । जिससे वह अपना आजीविका चलाया करते थे। उनके पिता को छोटे से छोटे कामों में भी कभी शर्म महसूस नहीं हुई।यही कारण है कि मोदी जी भी कभी किसी काम में शर्म महसूस नहीं करते।
मोदी परिवार घांची( तेली) जाति का था जो की पारंपरिक रूप से वनस्पति तेल का उत्पादन किया करते थे। जो कि वर्तमान में अन्य पिछड़े वर्ग में आते हैं। बचपन से ही वह बहुत गरीब होते हुए भी अपने कर्तव्यों के प्रति गंभीर थे ।वह एक प्रतिभाशाली और उत्साही युवा थे ।वे प्रतिदिन अपने गांव के नजदीक गिरिपुर महादेव के मंदिर में भजन गाने जाते थे।
उनमें चीजों को बदलने और बेहतर बनाने का उत्साह था। वह चीजों को जैसे दिखते थे वह संसार को उसके हिसाब से ढालना चाहते थे ।
वह कहते हैं कि नवाचार नए विचार मूलतः मेरा स्वभाव था ।उन्होंने खुद को कभी असाधारण नहीं माना ।वह मात्र जब 8 वर्ष की उम्र में आर एस एस की शाखा में जाने लगे थे।
वे अपने पिता की टी स्टाल में मदद करने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बाल बैठकों में जाने लगे थे। विद्यालय में रट्टू तोता की तरह सीखने के बजाय उन्हें आर एस एस की बैठकों में वैचारिक आदान-प्रदान और वाद विवाद का माहौल ज्यादा अच्छा लगता था । वहां वे संसार के बारे में बहुत कुछ सीख रहे थे ।जो उन्हें आकर्षक लगता था।
यहीं पर उन्हें लक्ष्मण राव इनामदार से मुलाकात हुई जो छोटे नरेंद्र को बाल स्वयंसेवक के रूप में शामिल किया और उन्हें स्वयंसेवक होने के मायने सीखाने लगे। उन्होंने संगठन में त्याग ,समर्पण और कड़ी मेहनत का प्रशिक्षण लिया।
प्रत्येक मनुष्य के जीवन में माता-पिता एवं गुरु का विशेष महत्व है। जिनका प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में स्पष्ट दिखलाई पड़ता है। मोदी जी अपने गुरु के बारे में कहते हैं -“वह हमेशा सिखाते थे कि सामने वाले के गुणों व अच्छाइयों को खोजें और उन पर कम करें ।”
आगे वह कहते हैं-” कमियों पर ध्यान केंद्रित न करें। हर इंसान में बहुत सारी कमियां होती हैं लेकिन आपको सकारात्मक गुणों पर काम करना होता है।”
उनकी दिनचर्या स्कूल, चाय की दुकान और शाखा के बीच विभाजित थी ।किशोर नरेंद्र ने 1965 में भारत पाकिस्तान के युद्ध को अपनी आंखों से देखा था। उनमें बेचैनी भर गए थी। ऐसे में वे दोस्तों से कहते थे कि कैसे सारे पाकिस्तानियों को मिटा देना चाहिए। किशोर नरेंद्र में राष्ट्रीय भावना का उदय होने लगा था।
नरेंद्र मोदी जी जो नहीं करना चाहते थे उसे वह नहीं करते थे चाहे संस्कृति या पारिवारिक दबाव कितना भी हो। इसी बीच में घर से निकल पड़े सन्यासी बनने। वे दो वर्षों तक सन्यासी की भांति भारत में भ्रमण करते रहे । इस प्रकार घूमते हुए उन्हें लगा के मंजिल पर अभी नहीं पहुंचा जा सकता है।
वह कहते हैं -“मैं कुछ करना चाहता था लेकिन मुझे स्वयं समझ में नहीं आ रहा था कि करना क्या है? ”
1971 में पुनः में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक समर्पित कार्यकर्ता की भांति कार्य करने लगे।
1975 में देशभर में आपातकाल की स्थिति के समय वे कुछ समय के लिए अज्ञातवास में चले गए।
भुज में 2001 में आए भूकंप के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री केशु भाई पटेल के स्वास्थ्य खराब होने के कारण वे मुख्यमंत्री बनाए गए। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उनकी नीतियों को आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने का श्रेय दिया जाता है।
अपने श्रेष्ठ प्रतिनिधित्व के कारण वह गुजरात के चार बार (2001 से 2014 तक )मुख्यमंत्री चुने गए। उनकी लोकप्रिय को देखते हुए टाइम पत्रिका ने उनको ‘पर्सन आफ द ईयर’ 2013 के 42 उम्मीदवारों की सूची में शामिल किया है।
माननीय अटल जी की भांति ही वे भी एक राजनेता के साथ ही कवि भी हैं। वे गुजराती भाषा के अलावा हिंदी में भी देश प्रेम से ओत-प्रोत कविताएं लिखते हैं।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )