टूटता तारा | Tootata Tara
टूटता तारा
( Tootata tara )
एक रात बातों के मध्य
तुम एकाएक खामोश हो गए थे
मेरे पूछने पर मुझसे कहा
मांग लो तुम्हें जो दुआ में माँगना है
आज तुम्हारी मुराद पूरी हो जायेगी
मैंने कहा – कैसे ?
तुमने इशारा किया टूटते तारे का
जिससे मैं थी अनभिज्ञ
देख लो मेरी आँखों से
तुम यह कह रहे थे,
मूंदकर पलकें अपनी
कुछ होठों से दुआ निकल गई।
देखा मैंने तुम भी कुछ मांग रहे थे,
नही पता – क्या ?
एक – दूसरे को देखकर
हम दोनों मुस्कुरा दिए
क्या खूब है ये टूटता तारा
अनजाने कुछ कह गया
स्वयं टूटकर हमें
कुछ पल की खुशी दे गया।
मेरी आँखों मे आंसू बह निकले
आज नही तो कल
ये दुआ अधूरी रह जायेगी
टूटना है मुझे भी ऐसे ही
क्योंकि मैंने जो मांगा
वो मेरा है ही नही
बस हम ये रिश्ता निभा रहे हैं
छोड़ रखा है मांझी ने कश्ती को
बीच मझधार में-
फिर भी हम
कनारा तलाश रहे हैं
खामोश तुम भी थे
खामोश मैं भी–
लब्ज़ दोनों के
सिले हुए थे–
बस हम साथ
निभा रहे है–।।
डॉ पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’
लेखिका एवं कवयित्री
बैतूल ( मप्र )