Rang Panchami par Kavita
Rang Panchami par Kavita

रंगमयी झाॅंकी में रंग-पंचमी मनातें

( Rangmyi jhanki mein rang-panchami manate) 

 

आओं मिलकर हम-सब खेलें रंगों से ये होली,
फाल्गुन के महिनें में ‌करें आओं हम ठिठोली।
भर भरकर‌ मुट्ठी गुलाल फेंक रही देखो टोली,
मौसम भी लगता मन मोहक जैसे हम जोली।।

देश के कोनों-कोनों में अलग अनूठी पहचान,
इस महिनें से झड़ लग जाती अनेंको त्योंहार।
लोकोत्सवों की होती फाल्गुन-चैत्र से बौछार,
झगड़े एवं नफ़रत को भूलों करो सबसे प्यार।।

इसी उत्सव को मनाने के थे पहले ढ़ेरों तरीके,

लट्ठमार होली कही पर कौड़ेमार वाली होली।
पत्थर मार की होली कही भर पिचकारी मारी,
रंग भरें बर्तन में गिराते कीचड़ कही ये टोली।।

नशें में मस्त हो जातें कोई ‌चंग थपकी लगातें,
ढोल-मंजीरे ढोलक-ढपली फाग-राग सुनाते।
भांति-भांति के खेल गांवों में आयोजित होते,
इस रंग मयी झाॅंकी में हम रंग-पंचमी मनातें।।

कवियों ने भी रंग उकेरे लिखी रचनाएं प्यारी,
होली के हुड़दंग तो कोई विरह व्यथा उतारी।
पीली चुनर ओढ़ें है प्रकृति सरसों भी लहराई,
फाग के उड़ते धमाल होती जबरदस्त तैयारी।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here