अहसास कवि का | Ahsaas Kavi ka

अहसास कवि का

( Ahsaas kavi ka ) 

 

जब खिले फूल खुशबू को महकाते है
हाल भंवरो का जो मंडराते है
हर चमन मे उढे जब ये सैलाब सा
अपने भावों को हम भी लिख जाते है

वार अक्सर जो दिल पर कर जाते है
भान उनको भी कुछ हम करवाते है
जो करती मुदित मन कलम शोला बने
धार पैनी कलम की भी कर जाते है।।

जो भी अल्फ़ाल मन मे सवर जाते है
वो ही कागज़ पे अक्सर उतर जाते है
रुख हवाओ का जैसा भी अहसास दे
वो ही सीने मे अक्सर धड़क जाते है।

जब अंधेरे मे जुगनु टिमटिमा जाते है
रोशनी मे ना अक्सर वो नजर आते है
बात इनकी समझ हम भी यू लिख रहे
जो बुझे है चमक उनको भी दे जाते है

हो आसमा मे विहग पंख खुल जाते है
केद पिंजरे मे हो जब सिकुड़ जाते है
हाल दिल का काशमकश ये ऐसी बनी
अश्क नयनो से अक्सर ढलक जाते है

 

कवि व्यंग्यकार
अमन रंगेला “अमन” सावनेरी
सावनेर नागपुर महारास्ट्र

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