लक्ष्य
लक्ष्य
है दुनिया में ऐसा कौन?
जिसका कोई लक्ष्य न हो।
तृण वटवृक्ष सिकोया
धरा धरणीपुत्र गगन हो।
प्रकृति सभी को संजोया
कण तन मन और धन हो।
खग जल दिवा-रजनी बाल
वृद्ध जन व पवन हो।। है दुनिया ०
सब संसाधन यहीं हैं,सही है,
कहां दौड़ते ऐ विकल मन है।
समय संसाधन स्वस्थ चित
ऐ साधक!यही तुम्हारे धन हैं।
शिथिल न पड़े लक्ष्य भेद तिमिर में,
हम सब के आशीष वचन हैं।
जग के महान जन के कथन यहीं हैं,
तुम्हारी ऐसी चितवन हो।। है दुनिया ०
स्थिर करो अपनी नज़र को
अर्जुन सम लक्ष्य पाने को।
उठो ऐ कुम्भकर्णों देखो लक्ष्मण
धनुर्धर जगा है लक्ष्य पाने को।
दृष्टिपात करो वज्रपात पर
मेघ वध मेधा लक्ष्य पाने को।
समय बोध रहे, लक्ष्य सामने रहे,
चेतना में हो या सपन हो। है दुनिया ०