Badgumani ke Dhage
Badgumani ke Dhage

बदगुमानी के धागे

( Badgumani ke Dhage )

 

बदगुमानी के कुछ धागे
गुथे-गुथे
स्मृतियों के मोती
बिखरे हुए
जैसे किसी मियाद के
किसी पृष्ठ में
रखा सूखा गुलाब
कोई अतीत-सा प्रतिचित्र
कुछ चंद नज़्म
कहीं रूठी-सी
आधी अधूरी-सी।
अनायास
लिखते-लिखते
कहीं से कोई सदा
मन के शांत कोने में
गुजर जाती है।
ये तन्हा-सा सफ़र
पथरा के रह गया है
और
पलकों की कनारों में
कई स्मृतियों में
आब-ए-तलख बन गया है
बेखबर-सा
कोई पूछ रहा है —
मुझसे मेरी जिंदगी के मायने।।

डॉ. पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’
लेखिका एवं कवयित्री
बैतूल, मप्र

1- बदगुमानी- ख्याल
2- सदा- आवाज
3- आब-ए-तलख- अश्क, आसूं

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