जाग रे! तू जाग!!
( Jaag re tu jaag )
फन उठाये आ रहे हैं,
वंचना के नाग।
देखना अब त्याग सपना।
कर प्रकाशित दीप अपना।
ये गरल के सचल वाहक,
दूर इनसे भाग।
है अमंगल निकट आना।
दूध मत इनको पिलाना।
छोड़ते मुंह से सदा ये,
बस विषैले झाग।
केंचुलें रंगीन इनकी।
कालिमा पर प्रकट मन की।
डसा करते हैं उसी को,
जो करे अनुराग।
जाग रे! तू जाग!!
सुशील चन्द्र बाजपेयी