यह कैसी लाचारी है | Kaisi Lachari
यह कैसी लाचारी है
( Yeh kaisi lachari hai )
यह कैसी लाचारी है, पीर पर्वत से भी भारी है।
औरों के खातिर जीना, आज हुआ दुश्वारी है।
यह कैसी लाचारी है
छल कपट दंभ बैर छाया, झूठ का बोलबाला है।
चकाचौंध में दुनिया डूबी, फैशन का हवाला है।
लूटमार सीनाजोरी से, हुई त्रस्त जनता सारी है।
घर फूंक तमाशा देखे, हुई यह कैसी लाचारी है।
यह कैसी लाचारी है
मतलब की मनुहार हुई, निर्धन को पहचाने कौन।
सब पैसे की भाषा बोले, काम पड़े तो जाने कौन।
डूब गई स्वार्थ में दुनिया, क्या नर और क्या नारी है।
दूर के ढोल लगे सुहाने, लगे बड़ों की बातें खारी है।
यह कैसी लाचारी है
प्रेम की चादर बिछा लो, महफिल सजाओ प्यार की।
अपनापन स्नेह दिखाओ, खुशियां बांट दो बहार की।
ईर्ष्या द्वेष नफरतें घट घट, नैनो का जलना जारी है।
जो हिमालय बने बैठे, अब हिम पिघलने की बारी है।
यह कैसी लाचारी है
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )