दिल को अब किसी की जरूरत नहीं | Dil ko Ab

दिल को अब किसी की जरूरत नहीं

( Dil ko ab kisi ki jarurat nahi )

 

ढूंढ लेता खुशियां दिल कहीं ना कहीं।
दिल को अब किसी की जरूरत नहीं।
आ गया अब जीना दुनिया में दिल को।
ठिकाना सुहाना प्रीत की सरिता बही।

सिंधु लेता हिलोरें मोती बरसे प्यार के।
मनमौजी मतवाला झूम उठा बहार में।
मन ही मन कितनी बातें दिल ने कही।
दिल को अब किसी की जरूरत नहीं।

दिल की बगिया महकी तराने फूट पड़े।
गीत ग़ज़ल छंद लबों से गाने छूट पड़े।
महफिल सजा देखो दिल झूमता वही।
दिल को अब किसी की जरूरत नहीं।

दिल हुआ है दीवाना झूमने गाने लगा।
मन को मोहित कर गीत सुनाने लगा।
भरी महफिल में घुल जाता दिल कहीं।
दिल को अब किसी की जरूरत नहीं।

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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