तुम क्या कहोगे | Geet Tum kya Kahoge
तुम क्या कहोगे
( Tum kya Kahoge )
हम हलकानी में जी लेते हैं, तुम क्या कहोगे
हम आग-पानी में जी लेते हैं, तुम क्या कहोगे।
बोते हैं गेहूंँ काटते हैं गेहूंँ बटाई के खेत लिए
हम फूसपलानी में जी लेते हैं, तुम क्या कहोगे।
हमारे बच्चे होटल में धोते हैं प्लेट पेट के लिए
हम जूठदानी में जी लेते हैं, तुम क्या कहोगे।
कपड़े आधे अंग ढंकते नहीं है ठीक से सुनो
हम हिन्दुस्तानी हैं जी लेते हैं, तुम क्या कहोगे।
दवा महंगी और हमें भी लगती है बिमारियांँ
हम दूध पानी में जी लेते हैं, तुम क्या कहोगे।
विद्या शंकर विद्यार्थी
रामगढ़, झारखण्ड