जिंदगी

जिंदगी

जिंदगी

**

जिंदगी की समझ,
जिंदगी से समझ।
जिंदगी से उलझ,
जिंदगी से सुलझ।
अबुझ है इसकी पहेली,
तेरी मेरी ये सहेली।
न मिलती यह सस्ती,
ऊंची है तेरी हस्ती।
कभी किया करो सख्ती,
जो चाहो , चलती रहे कश्ती;
संभालो कायदे से गृहस्थी।
धीरज धैर्य संतोष रखो,
अनावश्यक लोभ से दूर रहो।
बातें कम, कर्म पर ध्यान,
गलतियों की अपनी लो संज्ञान।
लेते रहो गुरूजनों से ज्ञान,
बुजुर्गो का करो सदैव सम्मान;
सफल जिंदगी की यही पहचान।
विनम्रता क्षमाशीलता संग हो गंभीरता,
परिवार समाज में रखे एकजुटता;
भले ही हो उनमें विविधता।
सहयोग को रहे तत्पर,
बढ़ते रहे कंटकी पथरीली पथ पर।
न निराश हो जिंदगी से क्षणभर,
वही बन सकता है विश्वंभर ।

 

?

नवाब मंजूर

लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

यह भी पढ़ें :

मतदान जरूर करें

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *