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व्याकुलता | Vyakulta

व्याकुलता

( Vyakulta )

 

खोज लेती है धारा प्रवाह अपना
आपसे सलाह लेती नहीं
निगाहों में जिनके बसता हो सागर
वो नदी नालों में कभी रुकते नहीं

आदि से अनंत तक की यात्रा
रहती है गतिमान सदैव ही
ठहर सकते हैं भले मन या तन से आप
आपकी कहानी कभी रुकती नहीं

अन गिनत आँखें रहती हैं आप पर
आप सोचते हैं कि अकेले हैं
दुआ बद दुआएं छोड़ती नहीं साथ कभी
छुपा कर खेल आप जो भी खेले हैं

निकल आते हैं रास्ते हर सफर के
सफर का चयन निर्भर है आप पर
कहना गलत है कि साथी कोई नहीं
बनाना किसे है यह सोच आप पर है

बहाने कभी हल नहीं होते
जीवन में कभी कल नहीं होते
आज से ही बनता है कल भी
कल के लिए आप मगर व्याकुल नहीं होते

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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