बिखर न जाऊँ | Ghazal Bikhar na Jaoon
बिखर न जाऊँ
( Bikhar na Jaun )
तेरा फ़िराक़ है इक मौजे जाँसितां की तरह
बिखर न जाऊँ कहीं गर्दे-कारवां की तरह
न डस लें मुझको ये तारीक़ियाँ ये सन्नाटे
उजाला बन के चले आओ कहकशां की तरह
मेरे फ़साने में रंगीनियां ही हैं इतनी
सुना रहे हैं इसे लोग दास्तां की तरह
ये बेख़ुदी का तकाज़ा नहीं तो फिर क्या है
वो पूछते हैं मेरा हाल राज़दां की तरह
हज़ार बार इसी रहगुज़र से गुज़रा हूँ
तेरी तलाश में मैं गर्दे-कारवां की तरह
जो शख़्स थक गया दो चार ही क़दम चलकर
मैं रो रहा हूँ उसे उम्रे-जाविदां की तरह
तुम्हारे साथ तो जंगल में भी हमें हमदम
ये आसमान भी लगता था आशियां की तरह
तेरी निगाह में रानाइयाँ कहाँ साग़र
कि प्यार अब भी है नौख़ेज़ गुलसितां की तरह
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
फ़िराक़ -वियोग , जुदाई
मौज – लहर
जांसितां – जानलेवा
तारीक़ियाँ – अँधेरे
कहकशां – आकाश गंगा
राज़दां – राज़ को जानने वाला
उम्रे– जाविदां- लम्बी आयु (लम्बे समय तक)
रानाइयां-सुंदरता
नौख़ेज़-नया उगा हुआ