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योगेश की कविताएं | Yogesh Hindi Poetry

लालबहादुर शास्त्री

2 अक्टूबर 1904, मुगलसराय में आई बहार,
रामदुलारी का राजदुलारा,
चमका बनकर अलग ही सितारा,
कर्मठ, विनम्र,सरल,परिश्रमी,शांत भावी,
शिक्षा में निपुण थे अनुभवी,
चार भाइयों में सबसे छोटे,
जीवन में उतार चढ़ाव थे इनके मोटे,
अठारह अठारह का था इनका ना जाने कैसा आंकड़ा,
मृत्यु के अठारह महीने तक प्रधानमंत्री का कार्यभार,
उससे पहले जन्म के अठारह महीनों में पिता का साया था बिछड़ा,
जय जवान जय किसान,बढ़ा दी चहुं ओर देश की शान,
रची थी कोई साजिश या था कोई आस्तीन का सांप,
अपनी मृत्यु का रहस्य ये ले गए अपने ही साथ,
आज भी जुबां पर हर बच्चे के इनका नाम है,
जहां हुई अंत्येष्टि वो यमुना के तीर विजय घाट इनका मुक्तिधाम है,
ऐसे वीर पुरूष को जन्मदिवस पर कोटि कोटि प्रणाम है।।

चांद

पता नहीं क्यों पर आज मैंने भी बचपने सी ज़िद की,
अपने मां से चांद लाने की मांग की,

मां ने भी बड़ी मासूमियत से मुझे काला टीका लगा दिया,
ले जाकर मुझे शीशे के सामने खड़ा कर दिया,

और कहा,आओ तुम्हें मेरे चांद से मिलवाती हूं,
इस शीशे में तुम्हें चांद से रूबरू करवाती हूं।।

रचनाकार : योगेश किराड़ू

बीकानेर ( राजस्थान )

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