मै सीता की माता 

( Main sita ki mata )

 

क्यों त्यागे हे राम सिया को, लोकलाज को ताका।
क्या मर्यादा छली नही जब, वन वन भटकी वामा।
गर्भधारिणी इक अबला के, त्याग में क्या मर्यादा,
मुझे बताओ हे रघुनन्दन, दो मत मुझको झाँसा।

प्राण जाए पर वचन ना जाए, रघुकुल की मर्यादा।
मुझे बताओ दशरथ नन्दन , मै सीता की माता।
मिथिला के इस राजभवन को,क्या दोगे तुम उत्तर,
जनकनन्दनी की रक्षा का, भार भूल गये राजा।

हे कुल गौरव सूर्य वंश का, गौरव सिमट गया है।
नयन अश्रु भी सूख गये, बोलो यह प्रश्न बडा है।
मेरी तन्या के रक्षक तुम, अवधपुरी के दाता,
मुझे न्याय दो मेघवर्ण, साकेत के रघुपति राजा।

मुझे बताना ही होगा क्या, उसके कर्म बुरे थे।
या शोषित सी भूमि सूता के,भाग्य ही मूढ बडे थे।
नही जानना है मुझको की, आपके मन में क्या है,
मुझे जानना है बतलाओ, वैदेही मेरी कहाँ है।

छोड दिया क्यो वन में उसको, मुझको ही दे देती।
छाती मेरी बिलख रही ,सीता को त्याग जो देते।
क्यो ये धरती फटी नही, ये अम्बर गिरा नही क्यो,
जिस मुख त्यागे मैथिली को,ये जिव्हा कटी नही क्यो।

आज भी बिलख रही है मिथिला, रोते है नर नारी।
अवधपुरी के इस करनी पर, देते है सब गारी।
सरयू पार जो बेटी व्याहे, ये संताप बडा है,
हूंक लिए हुंकार लिख रहा, मै सीता की माता।

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उपरोक्त कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

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