हज़ल | Hazl
इलेक्शन
पास जबसे इलेक्शन है आने लगे
तबसे नेताजी सर्कस दिखाने लगे
ये है बापू का गुलशन यहां पर मगर
डाकु, गुंडे हुकुमत चलाने लगे
जबसे महंगी हुई है विदेशी शराब
देसी दारू वो पीने पिलाने लगे
मारना मच्छरों का जिन्हें पाप है
रोज़ मुर्गा,मटन वो भी खाने लगे
नौकरी रिटायर हम जो हुए
घर के चूहे भी आंखें दिखाने लगे
ऐसा बदला ज़माने का देखो चलन
अब तो कौवे भी काजल लगाने लगे
तंज़िया शेर सुन,सुनके अहमद जमील
सारे नेता सरों को खुजाने लगे
नेता बना है अब तू
नेता बना है अब तू खाने की बात कर
खाकर हराम, गंगा नहाने की बात कर
गीता भी और पुराण भी पढ़ लेना फिर कभी
तिजोरी का पहले माल पचाने की बात कर
तुझ पर पड़े जो भारी तो उसका तु कर मर्डर
और लाश ठिकाने लगाने की बात कर
मां -बाप के तू नाम पर सरकारी खर्च से
कालेज हर इक नगर में बनाने की बात कर
मज़दूर और ग़रीब को हर इक बजट में तू
सपने सुनहरे सिर्फ दिखाने की बात कर
बनकर किसी विभाग का अदना सा मंत्री
अपना ठसन सभी पे जमाने की बात कर
दारू पिला,पिला के इलेक्शन में ऐ जमील
सत्ता का ताज फिर से सजाने की बात कर
धीरे -धीरे
वतन के पुजारी वतन धीरे -धीरे
ये बेचेंगे धरती गगन धीरे -धीरे
करप्शन के कारण ही बनने से पहले
लुढ़कने लगा है भवन धीरे -धीरे
ये संसद में क़समें भी खाकर के देखो
ये करने लगा है ग़बन धीरे -धीरे
ये दौलत की खातिर ये ग़ुरबत का
शहीदों का बेचा कफ़न धीरे -धीरे
ये कल का भिखारी भी दिल्ली पहुंच कर
दिखाने लगा है ठसन धीरे -धीरे
मिरे देश में अब सियासत का यारो
शुरू हो चुका है पतन धीरे -धीरे
जमील आओ पीपल के साये में बैठें
के बढ़ने लगी है तपन धीरे -धीरे
क्यों नहीं देते
रस्ते का है रोड़ा तो हटा क्यों नहीं देते
हर रोज़ की किट, किटी को मिटा क्यों नहीं देते
सरकार ग़रीबों से परेशां है अगर तो
सूली पे गरीबों को चढ़ा क्यों नहीं देते
है जीत इलेक्शन में अगर आप को प्यारी
हिंदू को मुसलमां से लड़ा क्यों नहीं देते
सरकारी मुलाजिम की है तनख्वाहें बहुत कम
दो-चार गुना और बढ़ा क्यों नहीं देते
जो शख्स करपटेड है घोटालों में माहिर
उस शख्स को जेलों में सड़ा क्यों नहीं देते
बारूद से आतंक मचाता है यहां जो
बारूद से घर उसका उड़ा क्यों नहीं देते
अंसारी जो बहुओं को जला देते हैं अक्सर
उनको भी सरे आम जला क्यों नहीं देते
जमील अंसारी
हिन्दी, मराठी, उर्दू कवि
हास्य व्यंग्य शिल्पी
कामठी, नागपुर
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